आप सभी का हमारे ब्लॉग पर स्वागत है। आज इस अवसर पर हम हनुमान चालीसा और बीज मंत्र चर्चा आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं, जो भगवान हनुमान के प्रति भक्ति और समर्पण का एक शक्तिशाली स्रोत है।
हनुमान चालीसा हिंदी में:
जय श्री राम!
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनौं रघुबर बिमल जसु, जा को पहिचानै होइ ॥
॥ चौपाई ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवन-कुमार।
बल-बुद्धि-विद्या-देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार ॥१॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
रामदूत अतुलित बल धामा, अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा ॥३॥
हाथ बज्र औ धवला विराजै, कांधे मूंज जनेउ साजै।
संकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन ॥४॥
(हनुमान चालीसा का मध्य भाग)
दूरिग्रम रघुवर बामकी, सकल लोक हित प्रभु कामकी।
प्रिय प्रदरशन सुमिरन गामी, बल बुद्धि विद्या देन के स्वामी ॥३६॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहौ रघुपति के दासा ॥३७॥
सुनहु सुजसु प्रभु कृपा करी, तुलसीदास सदा हित चरी।
राम लखन सीता मन बासी, हृदय करुना घट घट जो आसी ॥३८॥
सबही सुमन सब पिया बैसंती, कहत मालत मुनि नरहरि गावै।
बिनय पंचरात्र हनुमत मंगल, जय शङ्कर हरहि भव भङ्ग दल ॥३९॥
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिन प्रभु नारे।
सह-अमित जय जय जय हनुमान, गौरीसुत मकर निकायक वाना ॥४०॥ ॥
इस प्रकार हुतासन विजयी, रावण अरि रामसखा हनुमंत।
कृपा कीजै शंकर सुवन केतु, तुलसी सदा हरिचरित गावंत ॥४१॥
पावन गाथा प्रभु पद बंदौं, पारब्रह्म परमानंद मंद।
जय हनुमान ज्ञान प्रकाशक, जय कपीश भुवनेशमंद ॥४२॥
दोहा
पावन चालीसा गाइ प्रभु पद पावनरसादू।
तुलसीदास प्रभु कृपा से, हरिभक्ति भावबलभेदू ॥
हनुमान चालीसा का छंद दर छंद अर्थ:
॥ श्रीगुरु चरण स्मरणाम ॥ ॥ राम लक्ष्मण सीता सहित ॥॥ हनुमान चरित्र कथा ॥॥ कवि तुलसीदास सयोजित ॥
अर्थ: इस प्रथम छंद में कवि तुलसीदास अपने गुरु का स्मरण करते हैं और फिर भगवान राम, लक्ष्मण और सीता माता सहित हनुमान जी की कथा का वर्णन करने की इच्छा व्यक्त करते हैं।
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनौं रघुबर बिमल जसु, जा को पहिचानै होइ ॥
अर्थ: मैं अपने गुरु के चरण-कमलों की धूल से अपने मन को पवित्र करके भगवान राम की निर्मल महिमा का वर्णन करता हूँ, जिसे केवल वही समझ सकता है जो उसे सही रूप से पहचानता है।
॥ चौपाई ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवन-कुमार।
बल-बुद्धि-विद्या-देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार ॥१॥
अर्थ: मैं अपने शरीर को बुद्धिहीन समझकर पवनपुत्र हनुमान का स्मरण करता हूँ। मुझे बल, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करें तथा मेरे दुखों और दोषों को दूर करें।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
रामदूत अतुलित बल धामा, अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
अर्थ: ज्ञान और गुणों के सागर हनुमान को नमस्कार। तीनों लोकों को ज्ञान देने वाले, राम के दूत, अद्वितीय शक्ति वाले, अंजना के पुत्र और पवन देव को नमस्कार।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा ॥३॥
अर्थ: महान वीर, वीर और बलवान, बुरे विचारों को दूर करने वाला और सद्बुद्धि का साथी। सुनहरे रंग का, सुंदर वस्त्र पहने, तोरणजंगल के समान कुण्डलियाँ और घुंघराले बाल।
हाथ बज्र औ धवला विराजै, कांधे मूंज जनेउ साजै।
संकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन ॥४॥
अर्थ: हाथ में वज्र और तेजस्विता लिए, कंधों पर पवित्र धागा पहने, शंकर और केसरी के पुत्र, अपार तेज और वैभव से युक्त, सभी लोकों में पूजित।
विदर्भानुज वीरबर जावन, कुमतिनिवार सुमति के दावन।
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा ॥५॥
अर्थ: वे भीषण देखने वाले वीर हनुमान, दुर्बुद्धि को दूर करने वाले और सद्बुद्धि के देनेवाले हैं। उनका स्वर्णिम शरीर सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित है और उनके कान में कुंडल और बाल घुंघराले हैं।
संकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन।
विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर ॥६॥
अर्थ: वे शिव और केसरी नामक वानर के पुत्र हैं। उनकी तेजस्विता और प्रभाव की सम्पूर्ण विश्व में वंदना की जाती है। वे अत्यंत विद्वान्, गुणवान् और चतुर हैं तथा श्रीराम के कार्य को करने के लिए उत्सुक रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया।
सुकृत सुंदर कटिब्रता धारी, राम सेवा करिबे को स्वभारी ॥७॥
अर्थ: वे प्रभु के चरित्र को सुनने के लिए लालायित रहते हैं और उनके मन में राम, लक्ष्मण और सीता बसे हुए हैं। वे सुन्दर, शुभकर्मा और व्रत के पालन करने वाले हैं तथा श्रीराम की सेवा करना उनका स्वभाव है।
जय हनुमानज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥८॥
राम दूत अतुलित बल धामा…
अर्थ: जय हो हनुमान, ज्ञान और गुणों के सागर। जय हो उस कपीश्वर को जिसने तीनों लोकों को प्रकाशित किया। वे श्रीराम के दूत हैं और उनमें अतुलनीय बल है…
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया।
सुकृतसुंदर कपिब्रता धारी, राम सेवा करिबे को सुभारी ॥९॥
अर्थ: वे प्रभु के चरित्र को सुनने में आनंद लेते हैं और उनके मन में राम, लक्ष्मण और सीता बसे हुए हैं। वे सुंदर कर्म करने वाले, व्रतधारी वानर हैं और राम की सेवा करना उनका कर्तव्य है।
बिकट रूप धरि अस्तुति करही, भूत पिशाचनिकट नहिं आवही।
महाबीर वीर विक्रमी रघुवर समर सरासन अमी ॥१०॥
अर्थ: भयंकर रूप धारण करके वे स्तुति करते हैं और भूत-प्रेत उनके नजदीक नहीं आते। वे महाबली, वीर और पराक्रमी हैं और युद्ध में श्रीराम के निर्भीक सहयोगी हैं।
आजहुँ रिस करि फिरिहि जगजीत, भूत भाविन भयावनि दीन्ही।
भीम रूप धरि सिंघिका गरजी, अनरथ कुमति दुष्ट परि हरजी ॥११॥
अर्थ: आज भी वे जगत् के विजेता होकर क्रोध में विचरते हैं और भय देते हैं। उन्होंने भीषण रूप धारण किया और सिंह की तरह गर्जना की, जिससे दुष्टों की बुरी बुद्धि और अनर्थ का नाश हुआ।
विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीताम बसिया ॥१२॥
अर्थ: वे अत्यंत विद्वान्, गुणी और चतुर हैं तथा राम के कार्य को करने के लिए उत्सुक रहते हैं। वे प्रभु के चरित्र को सुनने में आनंद लेते हैं और उनके मन में राम, लक्ष्मण और सीता बसे हैं।
सुकृत सुंदर कटिब्रता धारी, राम सेवा करिबे को स्वभारी।
वानर वीर थल फल ध्याही, पुनरपि रघुपति पहिं अहाही ॥१३॥
अर्थ: वे सुंदर कर्म करने वाले, व्रतधारी हैं और राम की सेवा करना उनका स्वभाव है। वे वानर वीर फलों को खाते और फिर से श्रीराम के पास आते हैं।
सदा रामभगत कहि गावहीं, तुलसीदासकृतमंगलगाथा।
राम इष्ट मनोहर लीलाही, सदा कामना रहत समीलाही ॥१४॥
अर्थ: वे सदा श्रीराम के भक्त कहे और गाए जाते हैं, जैसा कि तुलसीदास द्वारा रचित इस मंगलगाथा में वर्णित है। राम उनके इष्ट देव और मनोहारी लीला से सम्पन्न हैं। वे सदा श्रीराम को प्राप्त करने की कामना रखते हैं।
ओर ईंदुसदा ईश जानकी, रिपुहि रिपुदल रावन अपमानी।
कपि कोटि प्रभु शक्ति समेता, भगति भावना भंजन जेता ॥१५॥
अर्थ: वह सदा चंद्रमा के समान शोभित हुई जानकी के पति श्रीराम और रावण के शत्रु दल के अपमानकर्ता हैं। उनके पास लाखों वानरों की सेना और दिव्य शक्तियां हैं, और वे भक्ति के भाव को नष्ट करने वाले दुष्टों पर विजय प्राप्त करते हैं।
कंदुक प्रीति बिहरत मातुर, गिरिवर कुंजन निकर बासुर।
सुनत भजन मुनि नर नारद, कबहुं मिलत हरि हरहि भारद ॥१६॥
अर्थ: वे माता के प्यार से खेलते और पर्वतों, वनों और घाटियों में निवास करते हैं। मुनि, मनुष्य और नारद उनके भजन सुनते हैं, और कभी-कभी वे भारद्वाज ऋषि से भी मिलते हैं।
कपि सम्राट कपि केसरी अंगद, अनुज प्रताप सिंघावलोकन।
प्रभु सेवा निरत सदाही, राम मिलन के काराननकौँ धावाहीं ॥१७॥
अर्थ: वे वानरों के राजा हैं और अंगद उनके समान एक वानर केसरी है। उनके भाई की उग्र दृष्टि सिंह के समान है। वे सदा प्रभु की सेवा में रत रहते हैं और श्रीराम से मिलने के लिए घाटियों में दौड़ते हैं।
बैकुंठ के कोटिअनंत चतुरानन,
जे मुनि मानस नहिं जाहीं। रावरीभगत ही के गुन गावहीं,
सेष साधु नहिं बखानहीं ॥१८॥
अर्थ: वैकुंठ लोक के अनंत ब्रह्मांडों और चार मुखों वाले ब्रह्मा भी जिनके गुणों को नहीं जान सकते। केवल रावरी के भक्त ही उनके गुणों का गान करते हैं, अन्य साधु उनका वर्णन नहीं कर सकते।
सुर नर मुनि गण सिद्ध बरावाहीं, अस्तुति कहौं तुम्हरी।।
नेक नाग खग गिरिगनकरी, आदि अंत अनेक भरी॥ १९॥
अर्थ: देवता, मनुष्य, मुनि, सिद्ध आप की स्तुति करते हैं। नाग, पक्षी, पर्वत और नदियां भी आपकी स्तुति कहती हैं, जो प्रारम्भ और अंत से परे अनेक बार कही जा चुकी है।
बाल रूप ईंशोदरपरमानन्द, अस जात न ओरै जानहीं।
बेदपुरान सिमृति बखानहीं, महिमा अमित कहत बखानहीं ॥२०॥
अर्थ: आप बालरूप में इश और ईश्वर के उदर से उत्पन्न हुए परमानन्द के स्वरूप हैं, जिसे और कोई नहीं जानता। वेद, पुराण और स्मृतियां भी आपकी अपार महिमा का वर्णन करती हैं।
भगति भाव महि पावन, गिरावर गुन गावत गुनधामा।
ऋषि मुनि सुर सिद्ध मुनि बखानहीं, रहस्यरीति मुद्रित मन बानी ॥२१ ॥
अर्थ: आप भक्ति के भाव से पावन हैं। पर्वत भी आपके गुणों का गान करते हैं, क्योंकि आप गुणों के धाम हैं। ऋषि, मुनि, देवता और सिद्ध भी मन और वाणी से आपके रहस्यमय स्वरूप का वर्णन करते हैं।
कहाँ लगि बरनों हनुमतमहिमा, सदा बसहु रघुबरहृदय मांहीं।
जय जय जय हनुमानबलबीरा, कृपासिंधु दीनदयानिधि कीन्हीं ॥२२॥
अर्थ: मैं हनुमान की महिमा का वर्णन कहां तक करूं? वे सदा श्रीराम के हृदय में निवास करते हैं। जय हो उस बलवान वीर हनुमान की, जो कृपा के सागर और दीनों पर दया करने वाले हैं।
अनुग्रह कीन्हों भगवानू, तुम्हरी नाथ कृपा निधि धारी।
महिमा अमित बरनत नागरालहिं, सो अवगुन मूडमति मोहीं ॥२३॥
अर्थ: हे नाथ! भगवान ने आप पर अनुग्रह किया है, आप उनकी कृपा के भंडार हैं। मैं मूर्ख और मोही होने के कारण आपकी असीम महिमा का वर्णन नहीं कर सकता, यह मेरा दोष है।
जो ब्रह्मादिकसुर नर मुनि बरनहीं, अनेक जनम जन्म के भाखहीं।
तुम्हरी महिमा को प्रभु गावत सहित सहित नहिं सकलकाल मिलि आखहीं ॥२४॥
अर्थ: जिस महिमा का वर्णन ब्रह्मा आदि देवता, मनुष्य और मुनि अनेक जन्मों से करते आ रहे हैं, उस महिमा को प्रभु सहित अन्य सभी मिलकर भी पूरी तरह नहीं गा सकते।
जागवत चित्त धरंगासुर भजन करते,
सदा सुमिरन रामचंद्रकी। जन आरते तुम्हरी शरन आये,
कामना पुरन सुर नर गनपंखी ॥२५॥
अर्थ: जो लोग जाग्रत चित और भावना से आपका भजन करते हैं और सदा श्रीरामचंद्र का स्मरण करते हैं, उनकी आपाद-कालीन पीड़ाएं दूर हो जाती हैं। देवता, मनुष्य और पक्षी भी आपकी शरण में आकर अपनी कामनाएं पूर्ण करते हैं।
आशासिद्धिकर गतिउर नाथ किंकर,
सदा रहो रघुनंदन के चेरे। छूटहिं बंदि महाबल होहु भक्तवत्सल,
पुरन भाव साखी दासगिरिधरिदेरे ॥२६॥
अर्थ: हे नाथ! आप आशा पूरी करने वाले, गति प्रदान करने वाले और भक्तों के हितैषी हैं। आप सदा श्रीरामचंद्र के सेवक रहिए। हे महाबली! आप भक्तों पर कृपा करें और उनकी बंधन मुक्त करें। उन भक्तों के भावों को पूरा करिए, जो आपका गुणगान करते हैं।
महा मोद प्रमोद प्रकाशिक पावन, पुलकावलि शरीर अनेका।
दुःख दारिद्रदूरिबन जावन, सुनत तुम्हारे गुन एका ॥२७॥
अर्थ: आपके एक गुण का श्रवण करने मात्र से शरीर में महान आनंद, प्रमोद और पावनता का संचार होता है। इससे अनेक रोमांच होते हैं और दुःख और दरिद्रता दूर भाग जाते हैं।
संकट तें हनुमत भक्त चहत न बिचारना,
नाशिबा मन बन भीर दुखु लागै।
भागवान गुन निधि अनुरागी जन,
नाम जपत बैकुंठ को जागे॥२८॥
अर्थ: संकटों में हनुमान भक्त को चिंता नहीं करनी चाहिए, न ही मन में कोई भय या वन की भीषण दुःखदायी अवस्थाओं से डरना चाहिए। भगवान के गुणों के भंडार पर अनुरागी लोग उनका नाम जपकर वैकुंठ को जाग उठते हैं।
नाम महामंत्र हरि अनुत गुन गाथा, जो यह पढ़े हनुमत बन आई। कब्हूँ न बिपदा बिघन बिपरीता, मनवांछित फल पावेलाई ॥२९॥
अर्थ: हनुमान का नाम एक महामंत्र है और उनके अनंत गुणों का गायन एक गाथा है। जो भी इसका पाठ करता है, उसके जंगल के समान संकट दूर हो जाते हैं। उसे कभी विपत्ति, बाधा और प्रतिकूलता नहीं होती और वह मनोवांछित फल प्राप्त करता है।
इत्यादि पद्य हनुमत चालीसा आरती,
प्रगट करैं सुर नर मुनि पावन गावन।
कामादि प्रसिद्धि बसिष्ठ लघु तापी,
सिद्धि ब्रिंद दान फलातिपुण्यपावन॥३०॥
अर्थ: इस प्रकार हनुमान चालीसा और आरती के पद्य पवित्र हैं, जिनका गायन देवता, मनुष्य और मुनि करते हैं। यह काम आदि सिद्धियों को प्रदान करता है। वसिष्ठ मुनि ने भी इसे बहुत छोटा कहा है, क्योंकि यह अनेक सिद्धियों और पुण्यों को देने वाला है।
सानंद कोटिहि इंद्रादि जेते,
पवनतनय अनुग्रह बिलसाहीं।
ते सकल मिलिकरि सुमंत्र पढ़ाहीं,
हनुमत लला कबहुँ न द्राहीं ॥३१॥
अर्थ: जितने भी इंद्र आदि कोटि-कोटि देवता हैं, वे पवनकुमार हनुमान की कृपा से आनंदित होते हैं। वे सभी मिलकर भी इस मंत्र को पढ़ने पर असफल होते हैं, क्योंकि हनुमान के बाल लीलाओं का कभी अंत नहीं आता।
सहज सुभाव बिरागी बनवासी,
कापहुँ कापें नहिं जग माहीं।
भूतग्रामनिकट नहिं आवै,
महाबीर वीर विक्रम बाहीं ॥३२॥
अर्थ: सहज स्वभाव से वनवासी और वैरागी होने के कारण उन्हें इस संसार में किसी से भी डर नहीं लगता। भूत-प्रेतगण उनके समीप नहीं आते क्योंकि वे महाबली, वीर और विक्रमी हैं।
एक बार मोहि सुमिरन कीन्हा,
तौ रिषिकट बंदि मुक्त बन आई।
जब-जब बिपति विपरीत बनै तब-तब
फरिकै प्रभु अनुकूल चलाई ॥३३॥
अर्थ: जब मैंने एक बार उनका स्मरण किया तो मैं मुनियों के बंधन से मुक्त हो गया। जब भी विपत्ति और प्रतिकूलतायें आती हैं, तब-तब वे मुड़कर प्रभु की अनुकूल गति चलाते हैं।
नासा बिगरी मिटी जग बाटें,
सुमिरिओ यह कपिराज कुमाराहीं।
भय बिनसी त्रास नासी रघुबीरा,
पद अरबिंद रिदै धरि आहीं ॥३४॥
अर्थ: नास्तिक मार्ग से भटककर जब संसार की सभी गतियां बंद हो गईं, तब मैंने इस वानरराज कुमार हनुमान का स्मरण किया। भय और त्रास नष्ट हो गए और श्री रघुवीर के चरण कमलों को हृदय में धारण किया।
सनमुख जब कपि राउ बनायऊ,
तब लंका सजी अचल उपल केरी।
रघुनंदन सेनापतिहोयऊ,
भयऊ लङ्का जरि जासी ब्यरी ॥३५॥
अर्थ: जब हनुमान को सेनापति बनाया गया, तो लंका शैल और उपलों से भरी प्रतीत होने लगी। जब वे श्री रामचंद्र की सेना के सेनापति बने तो लंका जल गई जैसे उपलों का ढेर हो।
बुद्धि बिबेक बिद्या बल धाम,
दूरिग्रम रघुवर बामकी।
सकल लोक हित प्रभु कामकी,
प्रिय प्रदरशन सुमिरन गामी ॥३६॥
अर्थ: वे ज्ञान, विवेक, विद्या और बल के धाम हैं, श्री रामचंद्र की कठिनाइयों को दूर करने वाले हैं। वे सभी लोकों के कल्याण के लिए कामना करने वाले प्रभु हैं। प्रियदर्शन हैं और उनके स्मरण का गान गाया जाता है।
अष्टसिद्धि नौनिधि के दाता,
अस बर दीन जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहौ रघुपति के दासा ॥३७॥
अर्थ: वे आठ सिद्धियों और नौ निधियों के दाता हैं, ऐसा वरदान जानकी माता ने दिया है। हे राम रसायन! आप सदा रघुनाथ के दास रहिए।
सुनहु सुजसु प्रभु कृपा करी,
तुलसीदास सदा हित चरी।
राम लखन सीता मन बासी,
हृदय करुना घट घट जो आसी ॥३८॥
अर्थ: सुनिए प्रभु ने तुलसीदास पर कृपा की है, जो सदा उनका हित करते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता उनके मन में वास करते हैं, जिनकी करुणा हर हृदय में विद्यमान है।
सबही सुमन सब पिया बैसंती,
कहत मालत मुनि नरहरि गावै।
बिनय पंचरात्र हनुमत मंगल,
जय शङ्कर हरहि भव भंगदल ॥३९॥
अर्थ: सभी फूल, सब मौसमी फूल बैसंती के समान हैं, जिन्हें मुनि और मनुष्य हरि का गुणगान करते हुए कहते और मालाएं बनाते हैं। यह बिनती और पंचरात्र का हनुमान मंगल है, जय हो शंकर को जो संसार के दुःख-समूह को नष्ट करता है।
राम दुआरे तुम रखवारे,
होत न आज्ञा बिन प्रभु नारे।
सह-अमित जय जय जय हनुमान,
गौरीसुत मकरनिकायक वाना॥४०॥
अर्थ: हे रामद्वार के रखवाले! प्रभु के बिना किसी का आना जाना नहीं हो सकता। अनंत बल के धारी, जय-जय हनुमान! गौरी के पुत्र और मकरनिकायक के वानर!
इस प्रकार हुतासन विजयी, रावण अरि रामसखा हनुमंत।
कृपा कीजै शंकर सुवन केतु, तुलसी सदा हरिचरित गावंत ॥४१॥
अर्थ: इस प्रकार श्रीराम के मित्र और रावण के शत्रु विजयी हनुमान् पर शंकर और सुवर्णकेतु की कृपा बनी रहे, जिनका तुलसीदास सदा हरि के चरित्र का गुणगान करता है।
पावन गाथा प्रभु पद बंदौं, पारब्रह्म परमानंद मंद।
जय हनुमान ज्ञान प्रकाशक, जय कपीश भुवनेशमंद ॥४२॥
अर्थ: मैं उस पवित्र गाथा के प्रभु के चरणों को प्रणाम करता हूं, जो परब्रह्म और परमानन्द का मन्दिर हैं। जय हो ज्ञान के प्रकाशक हनुमान को, जय हो भुवनेश्वरों की शोभा को!
दोहा
पावन चालीसा गाइ प्रभु पद पावनरसादू।
तुलसीदास प्रभु कृपा से, हरिभक्ति भावबलभेदू ॥
अर्थ: तुलसीदास प्रभु की कृपा से पवित्र चालीसा के गायन और प्रभु के पवित्र चरणों के रस को पाकर, हरि की भक्ति और उसके भाव का बल प्राप्त करते हैं।
बीज मंत्र (Beej Mantra or Bija Mantra)
हनुमान जी का बीज मंत्र है:
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ह्रीं हनुमतेे नमः
इस बीज मंत्र का विस्तृत अर्थ इस प्रकार है:
ॐ – यह प्रणव या ओंकार है, जो परब्रह्म का प्रतीक है।
श्रीं – यह हनुमानजी की लक्ष्मी और ऐश्वर्य को प्रकट करता है।
ह्रीं – यह हनुमानजी की शक्ति और वीरता को दर्शाता है।
क्लीं – यह उनकी स्फूर्ति और उत्साह को व्यक्त करता है।
ह्रीं हनुमते नमः – इसका अर्थ है “हनुमान् जी को नमस्कार है”।
इस बीज मंत्र का जाप करने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। यह शक्ति, सामर्थ्य, धैर्य और आत्मविश्वास प्रदान करता है। साथ ही यह बाधाओं और विघ्नों को दूर करने में सहायक होता है।
इस बीज मंत्र के साथ हनुमान चालीसा का पाठ करना विशेष लाभप्रद माना जाता है। यह मंगल, सौभाग्य और समृद्धि लाने वाला है।
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